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हिन्दी का प्रवासी साहित्य

डॉ. कालीचरण स्नेही

प्रकाशक : आराधना ब्रदर्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16185
आईएसबीएन :9788189076252

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हिन्दी का प्रवासी साहित्य

भारतीय समाज में, खासकर हिंदू धर्म के उच्च जाति-वर्ण के लोगों में समुद्र पार करना या समुद्री यात्राएँ पूर्णतः वर्जित र्थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि वास्कोडिगामा तो भारतीय बंदरगाहों पर आ गया, पर हमारे लोग समुद्र पार करके अन्य देशों में नहीं जा सके। ब्रिटिश शासनकाल में 1834 ई. के लगभग दक्षिण अफ्रीकी देशों तथा वेस्टइण्डीज के कुछ देशों में भारतीय मजदूरों को एग्रीमेण्ट पर भेजा गया, क्योंकि अंग्रेजों ने अश्वेतों को दासता से मुक्त कर दिया था, जिसके कारण उन्हें बंधुआ मजदूर या कि सस्ते श्रमिक मिलना बंद हो गए थे।

सूरीनाम, मॉरिशस, फिजी, त्रिनिटाड, टोवेको तथा दक्षिण अफ्रीका में बड़ी संख्या में समुद्री जहाजों से भारतीय मजदूरों को गन्ने के खेतों में काम करने के लिए ले जाया गया। यह मजदूर अधिकांश पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि से कलकत्ते से जहाज द्वारा कुछ वर्षों के एग्रीमेण्ट पर शर्तबन्दी प्रथा के अंतर्गत विदेश भेजे गए थे। इनमें अधिकांश मजदूर प्रायः अशिक्षित और दलित-पिछड़ी जातियों से ही थे। पढ़े-लिखे न होने के कारण यह एग्रीमेण्ट को गिरमिट कहते थे। बाद में इनके लिए गिरमिटिया शब्द ही प्रयुक्त होने लगा।

मारिशस, सूरीनाम तथा दक्षिण अफ्रीका के डर्बन शहर में भेजे गए मजदूरों की संख्या हजारों में थी। इन्हें ठेकेदारों एवं दलालों द्वारा तमाम प्रलोभन देकर एग्रीमेण्ट पर 20 वीं सदी के तीसरे दशक तक भेजा जाता रहा है। गिरमिट पर भेजे गए मजदूरों को अत्यंत विषम परिस्थितियों में उन देशों में प्रतिकूल मौसम में हाड़-तोड़ मेहनत करना पड़ी।

समुद्री यात्राओं में उन देशों को जाते हुए कई मजदूर सफर में ही बीमार होकर मर जाते थे, कुछ वहाँ काम करते हुए अंग्रेजों द्वारा शारीरिक यातनाएँ दिए जाने के कारण दम तोड़ देते थे। कुछ बीमारी की वजह से मारे जाते रहे। कुल मिलाकर इन भेजे गए गिरमिटियों की दशा अत्यंत शोचनीय तथा कारुणिक हो गई थी। इन मजदूरों पर उन देशों में क्या बीती? किस तरह का त्रासद जीवन उन्हें बिताना पड़ा, इसका विवरण बाद में मारिशस के अभिमन्यु 'अनत' जैसे गिरमिटिया साहित्यकारों के साहित्य में पढ़ा जा सकता है। लाल पसीना, जैसा उपन्यास गिरमिटियों की कथा का ऐसा सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है कि पढ़ने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

अभी हाल ही में मुझे मारिशस के प्रख्यात, साहित्यकार डॉ. हेमराज सुन्दर का साहित्य पढ़ने को मिला, जिसे पढ़कर उनके पूर्वजों द्वारा भोगे गए त्रासद जीवन का चित्र आँखों में तैर जाता है। श्री अनिरुद्ध जगन्नाथ तथा शिवसागर राम गुलाम जैसे राजनेता, भारतीय गिरमिटियों की ही संतान हैं।

विश्व हिंदी सम्मेलनों में गिरमिटिया देशों के साहित्यकारों का अलग सत्र आयोजित होता है, जिसमें बहुत बड़ी संख्या में भारतवंशी गिरमिटिया हिस्सा लेते हैं। मैंने दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सितम्बर 2013 में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में गिरमिटियों के सत्र में भाग लिया था, भोपाल में भी गिरमिटिया साहित्यकारों की बहुत बड़ी टीम, विश्व हिन्दी सम्मेलन में आई थी और गिरमिटिया साहित्य पर जो सत्र आयोजित हुआ था, वह बहुत ही गरिमापूर्ण तथा गंभीर चर्चाओं वाला सत्र रहा।

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    अनुक्रम

  1. समर्पण
  2. अनुक्रमणिका

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